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पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज की 81 वें जयंती पर प्रस्तुत है इनकी संक्षिप्त जीवनी

संतमत के आधारभूत आचार्य पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ दास जी महाराज

     प्रभु प्रेमियों ! पूज्यपाद  गुरुसेवी भगीरथ दास जी महाराज संतमत के आधारभूत आचार्य संतों की  परंपरा में परिगणित  सदगुरु महर्षि मेँहीँ  परमहंसजी महाराज के विशेष कृपापात्र एवं वरदानी शिष्य हैं। आज अगर संतमत अपने मूलभूत सिद्धांतों एवं आधार पर खड़ा है, तो हम कह सकते हैं कि यह पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ बाबा के गुरुसेवा एवं तपस्या का ही प्रभाव है, नहीं तो वर्तमान समय में सभी महापुरुष अपने-आप की मनोभाव की हवा में बहते हुए अपनी-अपनी  संस्था, कमेटी बनाकर अलग-अलग प्रचार करने में लगे हुए हैं। लेकिन गुरु महाराज के मूलभूत सिद्धांतों को पड़कर रहते हुए अपने दुखों का कुछ भी परवाह नहीं करते हुए, ये आज भी उन्ही उत्तम विधि को अपनाए हुए हैं, जिसका उपदेश गुरु महाराज अपने जीवनकाल में कर गए हैं। आइये इनकी 81 वीं जयंती के अवसर पर  इनके जीवन-यात्रा के मुख्य-मुख्य पड़ावों का सिंहावलोकन करते हैं।

गुरुदेव और भगीरथ बाबा
गुरुदेव और भगीरथ बाबा


पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज की संक्षिप्त जीवनी  

संत-महात्माओं की आर्वाचीन परंपरा

प्रसंन्न मुद्रा में पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ बाबा
प्रसंन्न मुद्रा में पूज्यपाद
     सृष्टि के आदिकाल से परम शान्ति-पद वा परमात्म-पद को प्राप्त किये 
 
हुए संत दैहिक, दैविक और भौतिक-त्रय तापों से संतप्त मानव-जाति को परम शान्ति वा परम सुख की राह दिखलाने के लिए इस संसार में भ्रमण करते हैं और ज्ञान-ध्यान रूपी निधि का रास्ता बतलाकर परम शांति प्राप्त करने का अधिकारी बना देते हैं। इतना ही नहीं, वे अपने सद्शिष्य को अपनी विशेष शक्ति देकर संसार के संतप्त मानव-जाति को ज्ञान-ध्यानरूपी निधि वितरण करने की आज्ञा प्रदान कर छोड़ जाते हैं। 

20 वीं शताब्दी के संत परंपरा में स्थान

समाधिस्थ गुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज
समाधिस्थ गुरुदेव

     20वीं शताब्दी के महान् संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की सर्वज्ञता, सर्वसमर्थता एवं परोपकारिता विश्वविदित है। उन्हीं महापुरुष की अनवरत रूप से छाया की तरह अपने को पूर्ण रूप से न्योछावर कर शारीरिक एवं मानसिक सेवा करके पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबा जी महाराज अपने सद्गुरु के संपूर्ण गुणों को अपने अंदर आत्मसात् करने का आशीर्वाद प्राप्त किये हैं। 


गुरुसेवी भागीरथ बाबा का जन्म एवं जन्मस्थान

बाल्यकाल में गुरुसेवी भगीरथ बाबा जी महाराज
बाल्यकाल में बाबा

     इनका जन्म भारतवर्ष के बिहार राज्यान्तंर्गत पूर्णियाँ जिला, रूपौली थाने के अंतर्गत लालगंज की पावन धरती पर वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् २००२ तदनुसार दिनांक २२ मई, १९४५ ई० के दिन मंगलवार को लगभग ४ बजे अपराह्नकाल में हुआ था। आपकी पूजनीया माताजी का नाम धनशी देवी, पिताजी का नाम श्रीबाला मंडल और दादाजी का नाम श्रीजानकी मंडलजी था। ये लोग जाह्नवी गोत्रान्तर्गत गंगोत्री कुल के थे। ये सबके-सब धार्मिक विचार के थे। 


जन्मजात संस्कार एवं नामकरण

     आपके दादाजी प्रत्येक वर्ष वैशाख अमावस्या से वैशाख पूर्णिमा के बीच किन्हीं पंडित के द्वारा श्रीमद्गभागवत-कथा करवाते थे। आपके दरवाजे पर भागवत-कथा प्रारंभ था, उसी शुभमुहूर्त में आपका जन्म हुआ। यह शुभमुहूर्त दर्शाता है कि आप कितने भाग्यशाली हैं। इसी शुभमुहूर्त में जन्म लेने के कारण आपके दादाजी ने आपका शुभ नाम श्रीभागवत मंडलजी रख दिया था। कुछ वर्ष पीछे जब आप अपने ही गाँव में प्राथमिक विद्यालये में पढ़ने के लिए गये. तो विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रीअरविन्द बाबू ने आपके लेखन कौपी के प्रथम पृष्ठ पर अपने से आपका नाम श्रीभगीरथ मंडल यह कहकर लिखा दिया कि भागवत तो एक पुराण का नाम है। राजा सगर के वंश में एक धार्मिंक राजा हो गये हैं, जिनका नाम भगीरथ थ। उन्होंने ही तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाया था। इसीलिए तुम्हारा नाम भगीरथ रखता हूँ। तबसे आपको सभी कोई भगीरथ कहकर जानने लगे। पीछे जब आप अपने गुरु महर्षिं मेँहीँ परमहंसजी महाराज की सेवा में रहने लगे, तो आपकी अहर्निश सेवा देखकर सभी लोग आपको गुरुसेवी भगीरथ बाबा कहने लगे। 

बाल्यावस्था एवं लालन-पालन  

गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्ति
 आशीर्वाद प्राप्ति

     आपके जन्म के कुछ समय बाद ही आपकी सौभाग्यशालिनी माताजी सख्त बीमार हो गयीं, जिसके कारण आप अपनी माँ के दु्ग्धपान से वंचित रह गये और आपका विशेषरूप से लालन-पालन आपकी दादीजी और आपकी छोटी फुआ कबूतरी देवी करने लगी। ये दोनों हर प्रकार से आपकी देख-रेख किया करती थीं। आपको जरा-सा भी कष्ट का अनुभव नहीं होने देती थीं। आप भी शान्त स्वभाव के थे। आपके शांत स्वभाव को देखकर परिवार एवं समाज के लोग बहूत खुश रहा करते थे। आप बचपन में भी एकांतप्रिय थे। कभी आपकी फुआ आपको घुमाने के ख्याल से खेत ले जातीं, तो आप एकांत पाकर खेत की मेढ़ पर पलथी मारकर बैठ जाते और अपने अंदर की सन्-सन् की आवाज को सुनने लगते थे। वह आवाज आपको सुनने में बड़ा अच्छा लगता था। आपको लगता था कि उस आवाज को हर हमेशा सुनते रहें।


पूर्व जन्मों के संस्कार

भक्तों के साथ गुरसेवी भगीरथ बाबा और गुरुदेव महर्षि मेंहीं
भक्तों के साथ बाबा व गुरुदेव

     लगता है कि आपके पूर्वजन्म की, की गयी अंतस्साधना का संस्कार आवाज सुनते रहने की प्रेरणा दे रहा हो। मेढ़ पर एक आसन से देर तक बैठे रहने पर परिवार के लोगों को आश्चर्य लगता था और ज़ब आपको मेढ़ पर से उठने के लिए जोर-जोर से पुकारकर एवं देह को हिलाकर उठने के लिए विवश कर देते थे, तब आप लाचार होकर उठ जाते और चुपचाप किन्हीं से कुछ वार्तालाप किये सी्धे घर की ओर चल देते थे।


संत सेवा का जन्मजात संस्कार

गुरु महाराज के सेवा में बाबा, भोजन के बाद खुला आसमान करते हुए
गुरु महाराज के सेवा में बाबा

     साधु-महात्माओं को सम्मान करना, उनको प्रणाम' करना आपकी स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। अगर आप किसी साधु को रास्ता चलते देख लेते, तो आप दौड़कर उनके समीप चले जाते थे और कुछ दूर से ही होथ जोड़कर प्रणाम करते हुए बोलते- 'दंडवत् बाबा! दंडवत् बाबा.... भीख माँगनेवाले व्यक्ति को या किसी वेश में रहनेवाले साधु को कुछ दे देना या भोजन करा देना आपका स्वभाव बन गया था। आप अपने घर में विरक्त भाव से रहा करते थे। बचपन में विद्याध्ययन की रुचि नहीं थी। जब आप कुछ सयाने हो गये, तब अपने बड़े भाई श्री तारणी मंडल जी के अधिक दबाव डालने पर किसी तरह अपने गाँव के बगल में स्थित ग्राम नगडहरी के खानगी स्कूल में अपने से बड़े भाई दशरथ मंडलजी के साथ पढ़ने के लिए जाने लगे। गुरुजी आपको जो कुछ पढ़ाते थे, आपको बहुत जल्द याद हो जाता था। जिससे गुरुजी आपको बहुत तन्मयता के साथ पढ़ाने भी लगे। आपके प्रारंभिक भौतिक विद्या के गुरुजी का नाम श्री सिताबी ठाकुर जी था।


प्राथमिक शिक्षा और संस्कार 

गुरुदेव के साथ पूज्यपाद  गुरु सेवी भगीरथ बाबा और एक अन्य गुरु भाई
गुरुदेव के साथ पूज्यपाद बाबा

     लगभग 2 वर्षों के बाद आपका नामांकन प्राथमिक विद्यालय लालगंज में ही करा दिया गया। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री अरविन्द पोद्वारजी थे। ये भी आपके सरल स्वभाव को देखकर तन्मयता के साथ पढ़ाने लगे। इन्होंने ही आपका नाम भागवत से बदलकर भगीरथ रखा था। तृतीय वर्ग से उत्तीर्ण होने के पश्चात् आपका नामांकन मध्य विद्यालय, ढोलबज्जा बाजार (भागलपुर) में चतुर्थ वर्गं में हुआ। इस स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री मदन मंडलजी थे। नामांकन कराने हेतु प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री अरविन्द बाबू स्वयं गये हुए थे। नामांकन के बाद जब आप घर आये, तो उस रात को आपको जोरों का ज्वर आ गया। इस ज्चर की पीड़ा से आप रातभर संतप्त रहे। दूसरे दिन ज्वर शांत हो गया और आप उत्साहपूर्वक विद्यालय जाने लगे। आपकी अनुशासनशीलता, पढ़ने की लग्नशीलता और शांत स्वभाव देखकर सभी शिक्षक आप पर प्रसन्न रहते थे। आपने मध्य विद्यालय ढोलबज्जा में चतुर्थ वग्ग से सातवें वर्ग तक की शिक्षा पायी। आप पढ़ने में मेधावी छात्र की गिनती में थे, जिसके कारण आपको कल्याण विभाग से छात्रवृत्ति भी मिली थी। आप प्रायः. रात में जगकर विद्याध्ययन करते थे। किसी का नकल करना आपको पसंद नहीं था। 


पूर्व निर्धारित गुरुसेवा का आभास

गुरुदेव के बात को ध्यान से सुनते हुए पूज्यपद गुरु सेवी भगीरथ बाबा
गुरुदेव के बातों में ध्यान

     सन् १९६२ ई० के दिसम्बर माह की बात है, जब आप सातवें वर्ग की वार्षिक परीक्षा देकर संध्या काल में स्कूल से अपने जन्म स्थान लालगंज की ओर लौट रहे थे, तो किसी वार्तालाप के सिलसिले में अपने सहपाठी श्री प्रकाश जायसवालजी से पूछा- 'प्रकाश! यह बताओ, जब हमलोग मिड्ल पास करेंगे, तो तुम क्या पढ़ोगे-कला या विज्ञान? उन्होंने कहा-मैं तो डॉक्टरी पढ़ूंगा। आपने कहा- 'हाँ, तुम डॉक्टरी पढ़ सकते हो; क्योंकि तुम्हारे पिताजी अमीर हैं । वे तुप्हं डॉक्टरी पढ़ा सकते हैं । लेकिन मेरे पिताजी गरीब हैं, वे मुझे अधिक खर्च देकर नहीं पढ़ा सकेंगे । मेरे मन में है कि यदि आगे नहीं पढ़ सका, तो किसी संत-महात्मा के पास चला जाऊँंगा और उन्हीं की सेवा करूँगा और वे जो योग-साधना बतलाएँगे, वही करने में लग जाऊँगा। 

  

गुरु महाराज का दिव्य आभाशीय दर्शन

सत्संग करते हुए  पूज्यपद गुरु से भी भगत बाबा एवं आचार्य महाराज
सत्संग करते हुए बाबा

     यह वाणी निकलते ही आपने देखा कि सामने बालुका राशि पर एक वयोवृद्ध महात्मा गैरिक परिधान धारण किये हुए बैठे हैं। उनका उन्नत ललाट, बायीं ओर एक टेटना (मांस-पिंड ) है। सिर पर सफेद लंबे बाल एवं सफेद दाढ़ी-मूँछें हैं।तपस्या की तेजस्वी, दिव्य चेहरा और आकर्षक आँखों से अपलक देख रहे हैं, मानो वे कह रहे हैं कि तुझे मेरी ही सेवा में आजीवन रहना पड़ेगा। आपने अपने सिर को झुकाकर और ऑँखों को बंद कर प्रणाम किया। प्रणाम के पश्चात् महात्माजी अंतध्धान हो गये। उसी दिनसे आपके दिल में भगवद्भक्ति में प्रगाढ़ प्रेम और पढ़ने-लिखने में अरुचि उत्पन्न हो गयी। 


प्रारंभिक बैराग्य एवं भौतिक शिक्षा का अंत

     मिड्ल पास के बाद आपने अपने पिताजी की आज्ञा से तीन किलोमीटर दूर उच्च विद्यालय, कदवा में आठवीं कक्षा में नामांकन करवाये और नियमित रूप से विद्याध्ययन करने लगे। किसी कारणवश उच्च विद्यालय, कदवा में आप वार्षिक परीक्षा देने से वचित रह गये। पुनः नेहरू उच्च विद्यालय, ढोलबज्जा (भागलपुर ) में नौंवीं कक्षा में नामांकन करवाये। अर्धवार्षिक परीक्षा के पूर्व ही आपने पिताजी के आदेशानुसार चेचक उन्मूलन प्रशिक्षण में भाग लिया और उसी के साथ आपकी भौतिक शिक्षा का अंत हो गया। 

पूज्यपद गुरु से भी भगत बाबा गुरुदेव को सत्संग वचन सुनते हुए
गुरुदेव और बाबा

     बालुका मैदान में महात्मा जी के दर्शन का प्रभाव आपके अंतःकरण पर इतना पड़ा कि बार-बार आपके मन में प्रेरणा होती थी कि मुझे उन्हीं महात्माजी के पास चला जाना है और उनकी आजीवन सेवा कर उनके द्वारा बतायी गयी युक्ति को पाकर भगवद्भक्ति करनी है। इस तरह आपकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति को देखकर आपके गाँव के पुराने सत्संगी स्व० हनुमान दासजी बोले कि मेरे गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज टीकापट्टी गाँव आनेवाले हैं । आप भी उनके दर्शन के लिए चलिये। 


गुरु महाराज का साक्षात् प्रथम दर्शन और दीक्षा ग्रहण

     उक्त तिथि आने पर आप महर्षि जी के दर्शन की लालसा लिये टीकापट्टी चल पड़े ।  वहाँ पहुँचने पर मंच पर विराजमान सद्गुरु महाराजजी के दर्शन कर आप हतप्रभ- से हो गये - ये तो वही महात्माजी हैं, जिन्होंने मुझे बालुका राशि पर दर्शन दिये थे। आपने दूर से ही प्रणाम कर मन में निश्चय किया कि अब मुझे भटकने की जरूरत नहीं होगी। मैं इन्हीं की सेवा में आजीवन रहूँगा। 

लाठी लेकर चलते हुए सद्गुरु महर्षि में ही परमहंस जी महाराज
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ

     दूसरे दिन दिनांक १ दिसम्बर, १९६६ ई० को दीक्षा लेने की प्रतीक्षा में सुबह से भूखे-प्यासे सत्संग-पंडाल में बैठे रहे। अपराह्न कालीन सत्संग के पश्चात् संध्याकाल में पुनः दीक्षा देने की घोषणा करने पर आप पुनः ठंढी हवा युक्त शीतकालीन मौसम में स्नान कर रात्रि लगभग ८ बजे दीक्षा लेने के लिए सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के निवास-स्थान संतमत-सत्संग मंदिर में गये और उनसे दीक्षा-ग्रहण किये। 


गुरुदेव का आपको अपलक देखना

ट्रेन में बाबा की गोद में गुरुदेव
ट्रेन में बाबा और गुरुदेव

     दूसरे दिन प्रातःकाल गुरुदेव को प्रणाम निवेदित करने के लिए गये, तो वे आपको एकटक से देखने लगे, मानो कोई पूर्व परिचित व्यक्ति हो। आप उनके पावन श्रीचरणों में पाँच आने पैसे निवेदित कर सत्संग करने के लिए पंडाल चले गये। जब वे मंच पर सत्संग के लिए जाने लगे, तो आप मंच पर जाने के रास्ते के बगल में हाथ जोड़े खड़े थे। आपके समीप आने पर पूज्य गुरुदेव आपके सामने खड़े होकर आपको पुनः एकटक से देखने लगे और मन में कुछ विचारते हुए मंच पर चले गये। सत्संग समाप्ति के पश्चात् आप उन्हें दूर से ही प्रणाम निवेदित कर अपने जन्म-स्थान लालगंज लौट आये। 


गुरुदेव का ध्यानाभ्यास के लिए चेताना

कुप्पाघाट में गुरुदेव और बाबा
कुप्पाघाट में गुरुदेव साथ

     गुरु -युक्ति को जानकर आप अपने भाइयों के साथ उदासीन भाव से घर -गृहस्थी के कार्यों को करने लगे। घर-गृहस्थी के कार्यों को करते हुए आप विशेष समय एकांत में बैठकर ध्यानाभ्यास और अध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन एवं चिंतन- मनन करते रहते थे। इसी दरम्यान एक दिन आप अपने दक्षिणाभिमुख बंगले में उत्तर सिरहाने कर चित्त लेटकर जप-ध्यान करते हुए सो गये। चॉदनी रात थी। रात्रि के लगभग ढाई-तीन बजते होंगे। आपकी नींद टूट गयी थी; लेकिन दिन के काम-काज में थक जाने के कारण कुछ आलस आ गया था। उसी समय पूज्य गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज अपनी लाठी का अगला सिरा को आपके पेट पर कुछ जोर से दबाते और डाटते हुए बोले-"अभी ध्यान करने का समय है और तुम सोये हुए हो, उठो। यह आवाज सुनकर आपकी ऑँखें खुल ग्यीं और आप चन्द्र-प्रकाश में स्पष्ट देखने लग गये कि पूज्य गुरुदेव आपको जगाकर, आपको देखते हुए पीछे हट रहे हैं। 

प्रवचन करते हुए सतगुरु
प्रवचन करते गुरुदेव

     आप पूज्य गुरुदेव को देखकर आवाकू रह गये कि इतनी बड़ी रात्रि में पूज्य गुरुदेव यहाँ कैसे आ गये? आपके देखते-देखते पूज्य गुरुदेव अदृश्य हो गये। आप बैठकर उसी रूप का और उनकी अहैतुकी कृपा का चिंतन करने लगे। आपके मन में होने लगा कि अब मुझे पूज्य गुरुदेव की सेवा में चला जाना चाहिए। मेरी सेवा के पुण्य-प्रताप से मेरे माता-पिता का भी कल्याण होगा।  




गुरुसेवा का प्रथम अवसर और कुप्पाघाट में सेवा

     इस दर्शन के बाद किन्हीं सत्संगी के द्वारा आपको मालूम हुआ कि पूज्य गुरुदेव ग्राम कोशकीपुर में आनेवाले हैं। यह गाँव लालगंज से लगभग १४-१५ किलोमीटर पूर्व दिशा की ओर है। उक्त तिथि को आप अपनी माताजी से आज्ञा लेकर कोशकीपुर संतमत-सत्संण मंदिर चले गये। सत्संग की व्यवस्था सत्संग-मंदिर में ही किया गया था। जब पूज्य गुरुदेव मंचासीन हुए तब हाथ डोरी वाला पंखा लेकर आपने उन्हें झेलना प्रारंभ किया। यहीं से आपकी गुरु-सेवा प्रारंभ हो गयी। आप अपने मन की अभिलाषा अपने ही गाँव के एक पुराने सत्संगी स्व० वासुदेव दासजी के द्वारा पूज्य गुरुदेव तक पहुँचायी। 

भक्तों के संग गुरुदेव
भक्तों के संग गुरुदेव

     पूज्य गुरुदेव आपको बुलाकर नाम-पता आदि पूछकर बोले-अगर तुम्हारे पिताजी तुम्हें बुलाने के लिए आएँगे, तब? आपने निःसंकोच उत्तर दिया, उन्हें समझा दूँगा । यह सुनकर थोड़ी देर ऑखें बंद कर मौन हो गये। इसके बाद आँखें खोलते हुए बोले-'अच्छा, जबतक तुम्हारी इच्छा हो, आश्रम में जाकर रहो। अभी मैं आश्रम नहीं जाऊँगा। तुम रामलगन के साथ आश्रम चले जाओ। रास्ते में खाने के लिए कुछ सामान ले लेना।' यह आज्ञा पाते ही आप पूज्य गुरुदेव को प्रणाम कर पूज्य रामलगन बाबा के साथ महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट के लिए प्रस्थान कर दिये। आश्रम पहुँचकर आपने सर्वप्रथम गाय को खिलाने के लिए एक प्रकार का घास, जिसको हथिया घास कहते हैं, लगाया। यहीं से आश्रम में पूज्य गुरुदेव की सेवा प्रारंभ हो गयी। आश्रम में गाय की हर तरह की सेवा, बागवानी का कार्य, गुरुदेव के निवास के आँगन में मिट्टी डालकर चौरस करने का काम, भोजनालय का काम और समय मिलने जब गुरुदेव सत्संग-प्रचार कार्य से आश्रम आते थे, तो उनकी आप शारीरिक सेवा भी कर लिया करते थे। 


कुप्पाघाट में गौसेवा और गुरुदेव का सत्संग

     कभी-कभी पूज्य गुरुदेव गाय की सेवा में किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर अपको अपने साथ सत्संग-प्रचार में ले जाया करते थे। सत्संग प्रचार-प्रसार से आश्रम आने पर फिर आप पूर्ववत् गाय की सेवा के साथ और अन्य प्रकार की सेवा में लग जाते थे। आप सेवाकार्य करते हुए भी रात्रिकाल में कुछ समय निकालकर अध्यात्म-ग्रंथों का अध्ययन-मनन और ध्यानाभ्यास भी कर लिया करते थे। इस दरम्यान आप अपने मन में सोचने लगे-अगर पूज्य गुरुदेव अपनी नजदीकी सेवा में रख लें, तो बड़ा अचछा हो। पून्य गुरुदेव तो अंतर्यामी थे, वे आपके मन के विचार को जान गये। 

गुरुदेव के बाल सवारते हुए गुरु से भी भागीरथ बाबा
गुरुदेव के बाल सवारते हुए

     उस समय आप गुरुदेव निवास के सामने दक्षिण दिशा में स्थित गोशाला में ही सोते थे। ब्रह्मुहूर्त तीन बजे जब आप कुल्ला -आचमन कर, ध्यनाभ्यास कर रहे थे। उसी वक्त विमल दास नाम के एक साधु आपके पास जाकर बोले कि आपको गुरु महाराज जी बुला रहे हैं। यह बात सुनते ही आप तुरंत गुरु महाराज जी के पास आ गये। वहाँ आकर आपने देखा कि गुरु महाराज जी अपने शयन करने के आसन पर बैठे हैं और पूज्यपाद संतसेवी बाबा दायं तरफ खड़े हैं। आप पूज्य गुरुदेव को और पूज्य संतसेवी बाबा को प्रणाम कर पूज्य गुरुदेव की बायीं तरफ खड़े हो गये। 


गुरुदेव के निजी शारीरिक सेवा में प्रवेश

     पूज्य गुरुदेव' आपको देखते हुए बोले- 'भगीरथ ! आज दिन से तुम मेरे पास रहो।' आप उसी दिन से उनकी शारीरिक सेवा में रह गये। उसी दिन अपराह्न २ बजे पूज्य गुरुदेव अपने आसन पर बैठे थे, बगल में पूज्य संतसेवी बाबा, पूज्य रामलगन बाबा और आप भी खड़े थे। आपको देखते हुए पूज्य गुरुदेव बोले, 'तुम मेरी सेवा में बेटा बनकर रहोगे या शिष्य बनकर?' आपने हाथ जोड़ते हुए विनम्रभाव से बोले- हुजूर ! बेटा बनकर।' यह सुनकर पूज्य गुरुदेव कुछ नहीं बोले। मानो 'मौनं स्वीकृति लक्षणं। उसी दिन से आपको 'बेटा' शब्द से संबोधित करने लगे। भोजनोपरान्त बचा हुआा पेय पदार्थ जैसे दूध या पानी के लिए कहते- बेटा ! पी जाओ।' यह आपके लिए विशेष प्रेम-प्यार का प्रतीक था। गुरु-शिष्यों का संबंध जन्मों का हुआ करता है। 


 गुरुदेव से जन्मों का संबंध

गुरुदेव के चरण पड़े हुए सेवक
गुरुदेव के चरण पड़े हुए सेवक

     एक दिन पूज्य गुरुदेव मौज में आकर आपसे बोले- 'बेटा! तुम पिछले जन्म में मेरा कोई था।' आपने हाथ जोड़ते हुए विनम्र भाव से कहा-'इसीलिए तो हुजूर अपनी सेवा में रखे हैं।' आप सेवाकाल में आलस्य न आने पावे इस ख्याल से कभी भी भरपेट भोजन नहीं करते थे। कपड़ा फट जाने पर आप उसे अपने से रफ्फू यानी सीकर पहनते थे। एक दिन की बात है, आपकी गंजी फट गयी थी। आप उसे अपने से सी रहे थे। उसी समय पूज्य गुरुदेव आपको धीरे-से पुकारे। आप बगल में ही थे, तुरंत सामने हाजिर होकर बोले- 'हूजूर! की कहल जाय छै?° गुरु महाराजजी बोले-'अभी क्या करता था? आप बोले-'हूज़ूर! गंजी फट गयी थी, उसी को सी रहा था।' इतना सुनते ही पूज्य गुरुदेव की आँखों में आँसू आ गये और करुण स्वर में बोले-साधु को कपड़ा सीकर भी पहनना चाहिए।' 


गुरुदेव की सेवा और सन्यास

     आपकी अहर्निश सेवा को देखकर दिनांक १५ अगस्त,  १९७१ ई० को पूज्य रामलगन बाबा पूज्य गुरुदेव से बोले- 'हुजूर! भगीरथजी को संन्यास वस्त्र दे दिया जाए ।' पूज्य गुरुदेव बोले- हाँ, इसपर मुझको विश्वास है, इसको संन्यास दे दँगा।' फिर आपको देखते हुएं बोले-'भगीरथ! गेरुआ वस्त्र लाओ।' आप गेरुआ वस्त्र लेकर पूज्य गुरुदेव के समीप गये और गुरुदेव के हाथों में वस्त्र दे दिये। कुछ क्षणों तक अपने हाथों में वस्त्र रखकर बोले- 'लो पहन लो।' वस्त्र देने के बाद बोले-कुछ प्रसाद भी है ? आपने कहा- 'जी हुजूर! केला है।' यह सुनकर गुरुदेव बोले कि थोड़ा-सा केला छिलकर खिला दो और पानी से मेरे मुँह को पोंछ दो। प्रसाद में चढ़ाये गये केले में से ही एक केला को छिलकर आपने उन्हें थोड़ा-सा खिला दिया और अपने हाथ को पानी में भिंगाकर उनके मुँह को पोंछ दिया। इस प्रकार की सेवा लेना प्रेम-प्यार का ही प्रतीक है।


सत्संग प्रवचन करने का अवसर और उदघोष

गुरुदेव भगवान के विभिन्न सेवा करते हुए पूज्यपद गुरु से भी भागीरथ बाबा
विभिन्न सेवा में पूज्य बाबा

     आपको कभी-कभी सत्संग-अधिवेशन में खड़े होकर बोलने का भी आदेश दिया करते थे। इसी दरम्यान मानसी के वार्षिक महाधिवेशन में आदेश पाकर ८-९ मिनट तक आपने प्रवचन किया था। आपके प्रवचन के बाद पूज्य गुरुदेव अपने सामने माईक मँगवाकर बोले थे-मैं इस लड़के को खड़ा होकर बोलने के लिए इसलिए कहता हूँ कि यह संतमत में आगे काम आएगा। 

     पूज्य गुरुदेव की इस तरह की घोषणा करने पर पूरे पंडाल में 'गुरु म्रहाराज की जय' ध्वनि से गुंजायमान हो गया। पूज्य गुरुदेव आपको अध्यात्म ज्ञान सुनाते-समझाते रहते थे और आप भी कभी-कभी अपनी साधनानुभूति की बात उन्हें सुना दिया करते थे। एक दिन पूज्य गुरुदेव प्रसन्न होकर बोले-"तुम्हारी भक्ति इसी जीवन में पूरी होगी। " सन् १९८० ई० में पूज्य गुरुदेव प्रसन्न होकर आपको सुरत-शब्द-योग की क्रिया बतला दिये और १९८४ ई० में दीक्षा देने का आदेश दे दिये। 


गुरुभक्ति से आनेको आशीर्वाद और वरदान की प्राप्ति

रामायण पाठ करते हुए बाबा
रामायण पाठ करते हुए बाबा

     आपकी गुरुसेवा, गुरु-भक्ति , मातृ-पितृ भक्ति एवं गुरुजनों की किस तरह सेवा होनी चाहिए, इसकी प्रेरणा की आधारशिला बन गयी है। आप अपने गुरू की हर प्रकार की सेवा करते समय हमेशा यह ख्याल रखते थे कि इनको किसी प्रकार का अभाव या कष्ट का अनुभव न हो। इसके साथ-साथ आपके मन में यह भी सदा बना रहता था कि हमारी किसी भी प्रकार की सेवा में त्रुटि न हो। आप हर क्षण, रात-दिन बिना उकताये सेवा में लगे रहते थे। इसीलिए आपकी सेवा से प्रसन्न होकर आपको सद्गुरु महाराज ने अनेक प्रकार के आशीर्वाद प्रदान किये हैं। उनमें कुछ इस प्रकार हैं, जो सेवा से प्रसन्न होकर दिये थे- तुमको सब कुछ दे दिया, तुम्हारी लंबी आयु हो, तुमहारी भक्ति इसी जीवन में पृूरी होगी, तुमको लोग विदेश भी ले जाएँगे। आपके लिए तो गुरुदेव ने परम प्रभु परमात्मा से पाँच बार प्रार्थना भी की है- 'हे परमेश्वर! ह ईश्वर ! जो-जो गुण हममें है, वे सब भगीरथ को हो।' और तीन बार इस प्रकार प्रार्थना की है- जो-जो अवगुण हममें है, वह भगीरथ को नहीं हो।' 

सेवा रत पूज्य बाबा
सेवारत पूज्य बाबा

     आपके मन में हुआ, इनमें तो कोई अवगुण नहीं है, ये तो संत अवस्था प्रप्त कर चुके हैं, इनके द्वारा तो बहुतों का अर्थ के द्वारा भी उपकार हुआ है, फिर ये कैसे कहते हैं कि जो अवगुण हममें है, वह भगीरथ को नहीं हो? गुरुदेव तो अंतर्यामी थे, वे आपके मन की बात को जानकर बोले- 'अवगुण यही है कि हम जो लेटे रहते हैं, यह इसको नहीं हो।' 


तीनों लोको के दर्शन का आशीर्वाद

सत्संग कार्यक्रम में पूज्य बाबा श्री भगीरथ दास जी महाराज
सत्संग कार्यक्रम में पूज्य बाबा

     आपकी सेवा से प्रसन्न होकर पूज्य गुरुदेव आपके लिए तीनों लोक सूझने की बात भी बोले थे। यह प्रसंग इस प्रकार है-खगड़िया जिला स्थित संतमत-सत्संग मंदिर, रामगंज के उद्घाटन के उपलक्ष्य में प्रातःकालीन सत्संग की समाप्ति के बाद जब आप पूज्य गुरुदेव को अपनी गोद में उठाकर मंच पर से निवास की ओर ले जा रहे थे, उसी समय पूज्य गुरुदेव प्यार से आपके पीठ को अपने मुक्के से तीन बार थपथ्पाये। जब पूज्य गुरुदेव के निवास में पूज्य अभेदानंद बाबा प्रणाम करने आये, तब वे पूज्य गुरुदेव से निवेदन करते हुए पूछे कि हुजूर! मंच पर से आने के समय भगीरथजी की पीठ पर तीन बार मुक्का क्यों मारे? पूज्य गुरुदेव बोले- 'इसको तीन बार इसलिए मारा कि इसको तीनों लोक सूझेगा।'

सतगुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की सेवा में रथ पूज्य पाठ भागवत बाबा
गुरु सेवा रत बाबा

     एक बार पूज्य गुरुदेव आपकी छाती को अपनी छाती से लगाकर दो-चार मिनट तक पकड़े रहे, मानो अपनी आध्यात्मिक शक्ति आपमें प्रविष्ट करते हों। आपकी गुरु-सेवा और आपके ऊपर गुरु का कितना स्नेह था, इसको कहकर या लिखकर समाप्त करना असंभव है। पूज्य गुरुदेव के स्थूल शरीर के परित्याग के बाद भी आपकी सेवा सराहनीय रही; जैसे पार्थिव शरीर को एक सौ पल्ले धोती में घी, कपूर देकर ढकना, दाह-संस्कार के समय लगे रहना, अस्थि कलश को आपके द्वारा ही पूज्य गुरुदेव निवास, में स्थापित किया जाना।


गुरु महाराज के परिनिर्वाण के बाद गंभीर साधना

ध्यानाभ्यास करते हुए पूज्य  गुरुसेवी भगीरथ दास जी महाराज
 ध्यानाभ्यासरत पूज्यपाद

     आपकी एक-एक सेवा सब किन्हीं के लिए प्रेरक और अनुकरणीय बन गयी है। इस सेवा-साधना के चलते आज विदेश के लोग भी आपसे दीक्षा लेकर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। आपने बहुत दिनों तक सद्गुरु महाराज जिस गुफा में साधना कर निर्वाण प्राप्त किये, उसी गुफा में ध्यानाभ्यास किया। वहाँ साधना में विक्षेप होने के कारण आपने गुरु-निवास के पूरब की तरफ अपने से गुफा निरमित कर ध्यानाभ्यास किया करते थे। कुछ दिनों तक आप भगवान महावीर के साधनास्थल राजगीर के पॉँच पहाड़ पर भी साधना किये। वर्तमान में भी आप रात्रिकाल के शांत एकांत में साधना किया करते हैं। 


सत्संग प्रचार-प्रसार और लोक कल्याणकारी कार्य

गुरुदेव के वरदानी शिष्य पूज्यपद स्वामी श्री भगत दास जी महाराज, भगीरथ बाबा
 वरदानी शिष्य भगीरथ बाबा
     आप गुरु महाराजजी के लोक कल्याणकारी उपदेशों को सुनाने के लिए कष्टों को सहकर दूर-देहात में भी जाते हैं। अध्यात्म ज्ञान की गंभीर बातों को सरल भाव में समझा। देते हैं। आप छल-प्रपंच, अभिमान, मान-सम्मान से दूर रहना पसंद करते हैं। आपमें शुच्याचार, सदाचार और शिष्टाचार का व्यवहार देखा जाता है। श्रद्धालु भक्तों के बहुत आग्रह पर आप गुरु महाराज द्वरा मिले दीक्षा देने का अधिकार का उपयोग ३१ मई, १९८७ ई० से प्रारंभ किये। अबतक आपसे दीक्षित सत्संगिवों की संख्या ३१ इकतीस हजार से ऊपर हैं । आपके सिर पर बँधी पगड़ी स्वामी विवेकानंदजी की छवि की याद दिलाती है। जिस प्रकार स्वामी विवेकानंदंजी श्रीरामकृष्ण परमहंसजी के ज्ञान-ध्वजा को देश-विदेश तक पहुँचाये, उसी प्रकार आप भी सद्गुरु महाराजज़ी के ज्ञान को देश-विदेश में फैलाने का कार्य कर रहे हैं। 


     आपके द्वारा रचित पुस्तकें जो संतमत के गूढ़-गंभीर ज्ञान को सरलतम ढंग से समझाती है- 


१. महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेश'- 

 
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेश
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या
     इसमें आपने गुरुदेव के दैनिक क्रिया-कलाप का वर्णन, उनके द्वारा बतायी गवी कुछ दवाडइयों एवं उनके कुछ प्रवचनों का संग्रह किया है। यह पुस्तक अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा की ओर से प्रकाशित किया जाता है। 

२. 'संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी'

संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी
संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी
     इसमें आपने संतमत में प्रतिपादित कुछ विषय जैसे-- ईश्वर-स्वरूप, सत्संग, अपने से अपनी पहचान, गुरु-पूजा, सदाचार, योग के आठ अंग, जीव की नित्यता एवं आवागमन, जिज्ञासा-समाधान इत्यादि विषयों का वर्णन उदाहरण-सहित किया है। 

३. अपने गुरु की याद में 

अपने गुरु की याद में
अपने गुरु की याद में
     इस पुस्तक में आपने अपने गुरुदेव के कई चमत्कारिक संस्मरणों का समावेश किया है। इस पुस्तक से गुरुजनों की सेवा किस तरह से करनी चाहिए, इसकी जानकारी होती है। पूर्ण संत की कैसी-कैसी लीलाएँ होती हैं, उन सबका विवरण है। इस पुस्तक में पूरज्य गुरुदेव की प्रारंभिक और अंतिम जीवनी भी दर्शायी गयी है। 

४. 'महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन'- 

महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन
महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन
     इस पुस्तक में आपने सत्संग - योग, चतुर्थ भाग में जो सद्गुरु महाराज द्वारा गद्य में लिखित अनुभवगम्य वाणी है, उसको बड़े ही सरल ढंग से समझाया है।

५. साधक पीयूष' - 

साधक पीयूष
साधक पीयूष

     इस पुस्तिका में आपने साधक को किस प्रकार साधना में सफलता मिले इस संबंध में लिखे हैं। साथ-ही-साथ भगवान बुद्ध के पिछले जन्मों की कथा जो पुनर्जन्म को सत्यापित करता है, इसके साथ-साथ आध्यात्मिक और भी बातों को बड़े ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है, जो प्रेरणादायक है।

६. परमात्म प्राप्ति के साधन

परमात्म प्राप्ति के साधन
परमात्म प्राप्ति के साधन 
     इसमें पूज्य गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबा ने साधना के गहनतम अनुभूति का उपयोग करते हुए गुरु भक्त की मर्मज्ञता को प्रदर्शत किया है। इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के माध्यम से भक्ति के मार्ग पर चलकर सामान्य जीवन जीते हुए भी ईश्वर-भाक्ति करने की कला पर सरल-सहज ढंग से प्रकाश डाला गया है। अंतस्साधना के विकास के विभिन्न चरणों पर विशिष्ट्ता के साथ-साथ समग्रता में संतमत की साधना का विस्तृत परिप्रक्ष्य उपस्थित किया है। यह पुस्तक अत्यन्त उपयुक्त एवं पठनीय है। सामान्य जनों को भी साधना के लिए उत्प्रेरित करता है। 

७. सेवा से मेवा - 

सेवा से मेवा
सेवा से मेवा
     इसमें बताया गया है कि जो अभिवादनशील है और जो सदा वृद्धजनों की सेवा करने वाला है, उस मनुष्य की चार वस्तुएँ बढ़ती हैं-आयु, वर्ण, सुख और बल। गुरुजनों की सेवा करने का फल सेवा करनेवालों के वर्तमान जीवन में या इसके बाद वाले जीवन में अवश्य मिलता है। महापुरुषों कहना है कि सेवा का फल कभी भी निष्फल नहीं होता है; बल्कि कई गुणा अधिक बनकर सामने आता है। महापुरुषों की सेवा का संस्कार सेवा करनेवालों को उत्थान की ओर ले जाता है अर्थात् उनका यह लोक और परलोक दोनों सुखकर होता है।

८. गुरुदेव की डायरी - 

इसमें  गौरव महाराज के हस्तलिखित कई महापुरुषों के संक्षिप्त जीवन परिचय है और बहुत सारे भजन है जिसे हूं बहू उन्हीं के लिखित अक्षर में प्रकाशित किया गया है और समझने के लिए भारती नागरी लिपि में भी उसका ट्रांसलेट किया गया है। 

९. प्रेरक संत-संस्मरण

प्रेरक संत-संस्मरण
प्रेरक संत-संस्मरण
     यह पुस्तक भी गुरुदेव की डायरी का ही छोटा रूप है। इसमें डायरी के सभी बातों के साथ गुरु महाराज के बहुत सारे संस्मरण भी दिये गये हैं। जो बहुत ही रोचक और ज्ञान वर्धक है। ये संस्मरण केवल इनके द्वारा ही लोगों को उपलब्ध हो सकता था। 

१०. समय एवं ज्ञान का महत्व (संकलित) - 

समय एवं ज्ञान का महत्व
समय एवं ज्ञान का महत्व

     इसमें समय और ज्ञान के महत्व को दर्शाने वाला सद्गुरु महर्षि मेँहीँ  परमहंस जी महाराज का दुर्लभ प्रवचन प्रकाशित किया गया है और साथ में  प्रातः, संयंकालीन स्तुति प्रार्थना भी दिया गया है ।  जिससे कि सभी नए सत्संगी इस पुस्तक का पाठ करके रोजाना अपने मानव जीवन को सफल बनाने का काम कर सके। 

११. आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश (संपादित) - 

आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश
आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश 
     आद्यात्मिक धर्मशास्त्रों में आध्यात्मक ज्ञान भरे हुए हैं। यह ज्ञान जीवन के अंदर वह संस्कार डाल देता है, जिससे जीव अंतस्साधना के द्वारा कभी-न-कभी सभी बंधनों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर सके। इसी उद्देश्य को लेकर श्रीमद्भागवत पुराण, योगवासिष्ठ, महाभारत, अध्यात्म-रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, भगवान बुद्ध और पूज्य गुरुदेव (महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज) एवं अन्य संतों के उपदेशों में से थोड़ा संकलन कर 'आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश' नामक पुस्तक का रूप दिया है। 

१२. संतों का उत्तम उपदेश (संकलित) -

संतों का उत्तम उपदेश
संतों का उत्तम उपदेश
     स़ंतों के द्वारा ज्ञान-प्रदान करने की शैली भी अनोखी है। कभी वे वैदिक धर्मियों के वर्णमाला के आधार पर ज्ञान समझाते हैं, तो कभी इस्लाम-धर्मियों के वर्णमाला अलिफनामा के आधार कभी सिक्खों के वर्णमाला के आधार पर, कभी दिनों के नाम के आधार पर तो कभी महीनों के नाम के आधार पर। पूज्यपाद ने उनकी उसी अनोखी शैली में केवल बारहमासा, ककहरा एवं चौमासा का संग्रह कर 'संतों का उत्तम उपदेश' नामक पुस्तक का प्रकाशन करवा हमें संतों के ज्ञान को गागर में सांगर की भाति व्यवस्थित कर अध्ययन-मनन करने की प्रेरणा प्रदान किये हैं।

१३. The Importance of time and knowledge ( completed) - 

 
The Importance of time and knowledge
The Importance ..

     यह पुस्तक भी 'समय एवं ज्ञान का महत्व' का ही अंग्रेजी अनुवाद है। जो विदेशों में दीक्षित नये सत्संगियों के लिए अत्यंत लाभदायक तथा नित्य पठनीय है। 


१४. महर्षि मेंही चित्रावली (संकलित) - 

महर्षि मेंही चित्रावली
महर्षि मेंही चित्रावली
     इस पुस्तक में गुरु महाराज और पूज्य बाबा के बहुत सारे सादे और ओरिजिनल व रंगीन चित्रों का संकलन है जो की सभी भक्त एवं सत्संगियों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक एवं मानस ध्यान करने में अत्यंत सहायक है। 

१५. पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या

 
पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या
.. अलौकिक दिनचर्या
     "मुझे विश्वास है कि इसके पढ़ने से अवश्य जानकारी होगी कि संतो की कैसी- कैसी मौज होती है और उस मौज-भरी दिनचर्यां में कितना उपदेश भरा रहता है। मैं पूज्य गुरुदेव से प्राथ्थना करता हूँ कि इस पुस्तक के पढ़ने से संतों के प्रति विशेष श्रद्धा उत्पन्न हो।"  -गुरु चरणाश्रित भगीरथ 21/11/2024ई. 
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उपरोक्त लेख पूज्यपाद गुरुसेवी भागीरथ बाबा के ग्रंथ  'परमात्म-प्राप्ति के साधन'  में निम्नलिखित प्रकार से प्रकाशित है--

परमात्म-प्राप्ति के साधन 1
परमात्म-प्राप्ति के साधन १

परमात्म-प्राप्ति के साधन २


परमात्म-प्राप्ति के साधन ३
परमात्म-प्राप्ति के साधन३

परमात्म-प्राप्ति के साधन ४
परमात्म-प्राप्ति के साधन ४

परमात्म-प्राप्ति के साधन५
परमात्म-प्राप्ति के साधन ५

परमात्म-प्राप्ति के साधन ६
परमात्म-प्राप्ति के साधन ६

परमात्म-प्राप्ति के साधन ७
परमात्म-प्राप्ति के साधन ७

परमात्म-प्राप्ति के साधन८
परमात्म-प्राप्ति के साधन८

परमात्म-प्राप्ति के साधन ९
परमात्म-प्राप्ति के साधन ९

परमात्म-प्राप्ति के साधन १०
परमात्म-प्राप्ति के साधन १०

परमात्म-प्राप्ति के साधन११
परमात्म-प्राप्ति के साधन ११

परमात्म-प्राप्ति के साधन १२
परमात्म-प्राप्ति के साधन १२

परमात्म-प्राप्ति के साधन १३
परमात्म-प्राप्ति के साधन १३

परमात्म-प्राप्ति के साधन १४
परमात्म-प्राप्ति के साधन १४


सत्संग ध्यान स्टोर' 

     प्रभु प्रेमियों ! उपरोक्त सभी साहित्य के साथ-साथ सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के सभी साहित्य एवं अन्य संत महात्माओं के साहित्य आप महर्षि मेँहीँ आश्रम से ऑफलाइन में खरीद सकते हैं और 'सत्संग ध्यान स्टोर से ऑनलाइन मंगा सकते हैं। उपरोक्त पुस्तकों के बारे में विशेष परिस्थिति में 7547006282 नंबर के व्हाट्सएप पर मैसेज करें, फोन नहीं करें क्योंकि इससे मोक्ष पर्यन्त ध्यानाभ्यास में डिस्टर्ब होता है। 

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पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज की 81 वें जयंती पर प्रस्तुत है इनकी संक्षिप्त जीवनी पूज्यपाद गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज की 81 वें जयंती पर प्रस्तुत है  इनकी संक्षिप्त जीवनी Reviewed by सत्संग ध्यान on मई 21, 2025 Rating: 5

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